गर्भावस्था में ना लें एंटी डिप्रेशन की दवा, वरना…

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गर्भावस्था में महिलाएं एंटी डिप्रेशन दवाओं का करती हैं इस्तेमाल, जिसका असर सीधे उनके शिशु पर पड़ता है।

मां बनना किसी भी महिला की जिंदगी में सबसे सुखद एहसास में से एक है। जैसा कि माना जाता है कि महिला मां बनने के बाद ही पूर्ण होती है। ठीक उसी तरह महिला के लिए गर्भवती होने से लेकर बच्चे के जन्म तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान गर्भवती महिला को अपना विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि महिला जो भी गतिविधियां करती है, उसका सीधा संबंध गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। ऐसे में गर्भवती महिला को बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है।

वैसे देखा गया है कि गर्भावस्था के दौरान शारीरिक और मानसिक अनेक बदलाव होते हैं, जिसमें किन्ही कारणों से कुछ महिलाएं डिप्रेशन का शिकार भी हो जाती हैं। इससे निकलने के लिए वह एंटी डिप्रेशन दवाओं का इस्तेमाल करती हैंं, जो काफी हानिकारक होता है। दरअसल, इसका असर गर्भवती महिला के साथ-साथ गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है।

चलिए मानते हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं कई तरह के शारीरिक और भावनात्मक बदलावों से गुजरती हैं, जिसके चलते उन्हें कभी-कभी डिप्रेशन का भी एहसास होता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं ना महिलाएं तरह-तरह की दवाएं लेने लगें.

महिलाएं उस समय सोचे बिना भले ही एंटी डिप्रेशन दवाओं का सेवन कर लेती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एंटी डिप्रेशन दवाएं होने वाले बच्चे पर कितना गहरा असर डालतीं हैं? क्या हुआ ये पढ़कर सोच में पड़ गए ना, लेकिन ये सच है। जी हां, एक स्टडी ने इसे प्रूफ भी किया है।

दरअसल, एक स्टडी के मुताबिक एंटी डिप्रेशन दवाओं का प्रभाव बच्चे के दिमाग पर पड़ता है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने इसका प्रयोग पहले जानवरों पर किया,
जिन जानवरों को गर्भावस्था के समय एंटीडिप्रेसेंट दिया गया था, उनके बच्चों में शारीरिक रूप से कुछ महसूस करने की क्षमता नहीं बची थी। हालांकि, स्टडी में ये दावा नहीं किया गया कि जैसा परिणाम जानवरों पर देखने को मिला मनुष्यों पर भी ठीक वैसा ही परिणाम होगा, लेकिन ये दवाएं किसी भी किस्म के भ्रूण के लिए खरतनाक हैं।

वैसे तो मायो क्लिनिक के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान लगभग 7 फीसदी महिलाओं को डिप्रेशन महसूस होता है। डिप्रेशन में रहने वाली महिलाओं में प्रीमैच्योर डिलीवरी और कम वजन वाले बच्चे पैदा करने का खतरा ज्यादा होता है।

स्टडी के लेखकों का कहना था कि डॉक्टर्स में भी डिप्रेशन के लिए दवाएं लिखने का चलन बढ़ गया है, जो की गलत है। इससे पहले भी हुए कई रिसर्च में कहा गया है कि डिप्रेशन की दवाएं लेने से दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

फिलहाल, महिलाएं चाहें तो खुद को डिप्रेशन में जाने से बचा सकती हैं। सबसे पहले तो कोशिश यह करें कि कोई भी गर्भवती महिला डिप्रेशन में ना पहुंचे, उसके बावजूद भी कोई गर्भवती महिला अगर डिप्रेशन में चली जाती है तो उसे कभी अकेला ना छोड़ें, जल्दी से जल्दी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। योग और मैडिटेशन का सहारा लें तथा संतुलित आहार ग्रहण करें। सकारात्मक विचार वाली किताबें पढ़े।

अगर आप भी गर्भवती हैं और आपके साथ भी ऐसा होता हैं तो आप अभी से इन चीज़ों का ध्यान रखें।

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